एक थे राजा..उनकी कहानी का क्या है सच? जागरण संवादी में आया सामने
रजवाड़ों की विरासत...सत्र था। मंच पर थे अयोध्या राजपरिवार के सदस्य यतींद्र मिश्र दरभंगा के राजा युवराज कुमार कपिलेश्वर सिंह गुजरात के बालानिसोर की आलिया बाबी। सूत्रधार प्रशांत कश्यप ने इस दौरान कई प्रश्न उठाए। मसलन आजादी के बाद रजवाड़ों ने आगे बढ़कर नेतृत्व क्यों नहीं संभाला? इतिहास में अगर गलत लिखा गया तो उसका खंडन क्यों नहीं किया गया?

एक थे राजा। उनकी कहानी बड़ी लंबी है। वैसी नहीं, जैसी हम सुनते आए हैं। उससे इतर है। इतना जादुई जीवन तो नहीं था। पीढ़ी-दर-पीढ़ी इस कहानी में वैभवशाली आख्यान के साथ कई दर्द भरे कथानक जुड़ते गए। विरासत में पाया क्या? दर्द। वैभव खोने की पीड़ा। अपने वंश परंपरा की प्रतिष्ठा बचा पाने का दिन-प्रतिदिन का कठिन संघर्ष। संवादी के मंच से इन किस्सों की कुछ बात उठी तो रजवाड़ों के पर्दानशीं दर्द सामने आ गए।
रजवाड़ों की विरासत...सत्र था। मंच पर थे अयोध्या राजपरिवार के सदस्य यतींद्र मिश्र, दरभंगा के राजा युवराज कुमार कपिलेश्वर सिंह, गुजरात के बालानिसोर की आलिया बाबी। सूत्रधार प्रशांत कश्यप ने कई प्रश्न उठाए। मसलन, आजादी के बाद रजवाड़ों ने आगे बढ़कर नेतृत्व क्यों नहीं संभाला? इतिहास में अगर गलत लिखा गया तो उसका खंडन क्यों नहीं किया गया?
राजपरिवार के सदस्य यतींद्र मिश्र ने मंच पर विस्तार से की चर्चाइन प्रश्नों ने मंच पर उपस्थित राजपरिवारों के तीनों सदस्यों को मानो झकझोर दिया हो। अयोध्या राजपरिवार के सदस्य यतींद्र मिश्र कहते हैं- राजाओं के बारे में तमाम नकारात्मक बातें समाज में प्रचलित हैं। राजा घोड़ी से जाएगा और किसी की हत्या कर देगा.., राजा तो अंग्रेजों से मिले रहते थे। वे नाच-गाने में मशगूल रहा करते थे.. आदि..आदि। बेसिरपैर की हैं सारी बातें। उन्होंने स्पष्ट किया कि 70 प्रतिशत गजेटियर्स में यह स्पष्ट है कि रजवाड़े अंग्रेजों के खिलाफ
रजवाड़ों की संपत्ति का कुप्रबंधन हुआ?गुजरात की बालासिनोर रियासत की सदस्य आलिया बाबी कहती हैं-हम लोगों ने रजवाड़ा नहीं देखा, इसलिए हम मिस नहीं करते। हां, हम अपने पूर्वजों की बातें जरूर सुनते हैं। मेरे परदादा, दादा ने साहित्य, रंगमंच, संगीत कला, खेल के लिए अतुलनीय योगदान दिया। दरभंगा के राजा युवराज कुमार कपिलेश्वर सिंह ने भी अपने पूर्वजों के योगदान का उल्लेख किया। वे कहते हैं कि काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) की स्थापना के लिए मेरे पू्र्वज रामेश्वर सिंह ने सबसे पहले पांच लाख रुपये दान दिया था। यही नहीं संस्थापक मदन मोहन मालवीय के साथ हर रजवाड़े जाते और चंदा जुटाते थे। इस प्रश्न पर कि रजवाड़ों की संपत्ति का कुप्रबंधन हुआ? युवराज ने सहमति में सिर हिलाया।
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