नवरात्रि का मौका हर किसी के लिए बेहद खास होता है क्योंकि इन 9 दिनों में देवी मां की भक्ति में हर कोई लीन रहता है। काजोल और रानी जहां हर साल मुंबई में दुर्गा मां का पांडाल लगाते हैं तो वहीं हाल ही में कई सितारों ने बताया कि नवरात्रि के इन 9 दिनों को वह कि तरह से सेलिब्रेट करते हैं।

HIGHLIGHTSनवरात्रि पर बचपन में मेले जाते थे पंकज त्रिपाठी
नवरात्रि पर मिथुन दा ने बहू को दिखाया था पुराना घर
सितारों ने ताजा की बचपन से जुड़ी सुनहरी यादें
नवरात्रि हर जगह धूमधाम से मनाई जाती है। इस फेस्टिवल से जुड़ी हर किसी की कोई न कोई मेमोरी जरूर होती है। कंजके बिठाना, डांडिया खेलना और मां की भक्ति में लीन हो जाने के साथ नवरात्रि के 9 दिन कैसे बीतते हैं पता ही नहीं चलता।
बॉलीवुड और टीवी स्टार्स भी इन 9 दिनों का जश्न बड़ी ही धूमधाम से मनाते हैं। हाल ही में पंकज त्रिपाठी से लेकर मिथुन चक्रवर्ती की बहू मदालसा शर्मा तक ने इस फेस्टिवल से जुड़ी अपनी कुछ यादें ताजा की।
भूल नहीं सकती बचपन की यादें
मदालसा शर्मा चक्रवर्ती ने नवरात्रि के दिनों की बचपन की यादों को ताजा करते हुए कहा, "हमारे यहां त्योहारों से एक भावनात्मक लगाव होता है, फिर हम मुंबई में हो या देश के किसी और कोने में। मेरे घर में मेरे मम्मी-पापा नवरात्र पूरे रीति-रिवाज और परंपराओं के साथ मनाते थे। मैंने भी उन्हें ही देखकर सब सीखा है। शादी के बाद जब मैं ससुराल आई तो यहां भी मुझे ज्यादा अंतर नहीं लगा। कुछ चीजों को छोड़कर यहां भी पूजा और त्योहार का उत्सव वैसे ही लगा। शादी के बाद पहली बार हम पूरे परिवार के साथ नवरात्र में कोलकाता गए थे। वो दुर्गा पूजा और वहां का माहौल मैं कभी भूल नहीं सकती हूं।
उसी समय पापा (मिथुन चक्रवर्ती) हमें अपने पुराने घर भी ले गए थे। अभी मैं त्योहार से जुड़ी कई परंपराएं सीख रही हूं। बचपन से लेकर जब तक मैं स्कूल कॉलेज में थी, तब तक गरबा और डांडिया को लेकर खूब उत्साह होता था। मैं खूब गरबा-डांडिया खेलती भी थी। जब एक्टिंग करने लगी तो सेट पर भी गरबा तो होता ही रहता था। मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा नारी शक्ति का प्रतीक है। यह बताता है कि एक नारी में ही देवी मां के सारे रूप होते हैं। जैसी परिस्थिति होती है, वो वैसा रूप लेती है। मैंने माता के किसी रूप की भूमिका अभी तक कभी नहीं निभाई है। भविष्य में ऐसा मौका मिलता है तो यह मेरे लिए सौभाग्य की बात होगी।
हर महिला है देवी समान
पंकज त्रिपाठी ने कहा, "त्योहारों की बात आने पर बचपन सबसे पहले याद आता है। दुर्गा पूजा के साथ ही त्योहारों की शुरुआत होती थी। वहां से संकेत मिलता था अब ठंड का शुभारंभ हो रहा है। इसके बाद दीपावली, फिर छठ और कार्तिक स्नान। अष्टमी पर गांव में मेला लगता था। वहां मैंने पहली बार नाटक देखा था। मुंबई आने के बाद बांगुर नगर में दुर्गा पूजा का पंडाल बनता था। इसके अलावा लोखंडवाला या जुहू के पंडाल में ही हम लोग जाते हैं। पहले दुर्गा पूजा एक त्योहार था। जैसे-जैसे बड़े हुए तो लगा है कि शक्तिस्वरूपा की जितनी हम उपासना करते हैं, उतना सम्मान समाज में मौंजूद महिलाओं का भी करें।
हमारी मां, बहन, बेटी भी शक्ति का स्वरूप ही हैं। मुझे बंगाल का पारंपरिक नृत्य धुनुची देखना पंसद है। उस दौरान धुनुची से उठता धुआं पूरे माहौल को भक्ति और ऊर्जा से भर देता है। मेरी पत्नी मृदुला कोलकाता से हैं तो हम अक्सर दुर्गा पूजा पर कोलकाता जाते हैं। बंगाल में दुर्गा पूजा पर शुभ विजया बोलते हैं यानी आप सबको विजयदश्मी की शुभकामना। यह मुझे बहुत अच्छा लगता है। त्योहार हमारी संस्कृति और जीवन का हिस्सा हैं तो इनका जश्न मनाना जरूरी है।
शक्ति के बीच पली हूं मैं
रिया सेन ने कहा, "मैं बचपन की तरह अब भी दुर्गा पंडाल जाती हूं, लेकिन अब काफी बदलाव है। पंडाल आधुनिक हो गए हैं, कई सुविधाएं होती हैं। अब यह पर्व भी पहले से और बड़ा हो गया है। मैं अब पंडाल में बतौर खास मेहमान जाती हूं, तो शांति से बैठकर सब कुछ ध्यान से देखने का मौका मिलता है। जब मैं युवा थी, तब मैं सहेलियों के साथ साड़ी पहनकर जाती थी। हम रातभर घूमकर पंडाल देखते और खूब जंक फूड खाते थे। जब छोटी थी, तो नानी (अभिनेत्री सुचित्रा सेन) के पास जाते थे। वह अपने घर में दुर्गा मां की मूर्ति लेकर आती थीं। खुद अल्पोना (चावल के आटे से फर्श पर चित्र बनाना) बनाती और पूजा करती थीं। वहां हमारा पूरा परिवार जमीन पर बैठकर केले के पत्ते पर खाना खाता था।
दुर्गा पूजा पर मां (अभिनेत्री मुन मुन सेन) मेरे और रिया (सेन) के लिए हर साल नए कपड़े और गहने खरीदती हैं। यह शक्ति का पर्व है। मेरे घर में ही महिला शक्ति नजर आती है। मां और पिता दोनों तरफ के परिवार की महिलाएं स्ट्रांग रही हैं। मां भी जिस तरह से जीवन जीती हैं, वह रोज देखती हूं। उन सभी से वह शक्ति मुझमें आई है। यही कारण है कि कई चीजों से निपटना कम उम्र में ही आ गया था।
घर में नहीं बनता था खाना
तनिष्ठा चटर्जी ने बताया, "बचपन में मेरा पूरा महीना ही दुर्गा पूजा को समर्पित हो जाता था। मैं दिल्ली में पली-बढ़ी हूं। हम लोग जिस पंडाल से ताल्लुक रखते थे तो हर परिवार चंदा देता था। उसी से स्थानीय दुर्गा पूजा का आयोजन होता था। पूरे साल के नए कपड़े दुर्गा पूजा पर मिलते थे। पांच दिन मतलब दस कपड़े। महाअष्टमी में सबसे अच्छी ड्रेस पहनी जाती थी। दुर्गा पूजा के दौरान हमारे घर में खाना नहीं बनता था, तीन दिन हम पंडाल में ही भोग के रूप में मिलने वाली खिचड़ी के साथ लबरा और मिठाई पायेश खाते थे। आज भी इन पांच दिनों में मेरी भक्ति अलग स्तर की होती है। कितनी भी व्यस्तता क्यों न हो, हर साल मैं भोग के लिए पंडाल जरूर जाती हूं। इस बार स्वास्थ्य के चलते भोग नहीं खा पाऊंगी, लेकिन मम्मी और बेटी को पंडाल लेकर जाऊंगी।

मेरी बेटी को मां महालया (दुर्गा पूजा के प्रारंभ का और मां दुर्गा के धरती पर आगमन का प्रतीक) सुनाती है। ब्रिटिश फिल्म ‘ब्रिकलेन’ के दौरान मैंने बांग्लादेशी लड़की की भूमिका निभाई थी, तब मैं अपने पात्र को समझने के लिए कई बांग्लादेशी परिवारों से मिली। उन्होंने बताया कि पिछली सदी के सातवें दशक में जो इस्लामिक क्रांति हुई थी, उससे पहले तक बांग्लादेश में दुर्गा पूजा सबसे अहम त्योहार था। यह हमारी परंपरा है। हमारी फिल्मों में भी दुर्गा पूजा को बेहतरीन तरीके से दिखाया जाता है। हमारे सिनेमा में कई ऐसी कहानियां हैं, जिनमें महिलाओं ने अपनी लड़ाई लड़ी और जीती है, उन्हें देखकर दुर्गा मां का ही ध्यान आता है।
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